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न्याय कब मिलेगा

कानून हमें अन्याय से बचाता है  ।अगर यह कानून वर्तमान मे न्याय करने में सक्षम न हो तो उसमें सन्शोधन की जरुरत होती है ।समस्याएं तो कई हैं उसमें सन्शोधन भी होते रहे हैं । मैं जमीनी विवाद की तरफ लोगों का ध्यान खीचना चाहता हूँ ।यहां मुकदमा इतना लम्बा क्यों खिच जाता है कि न्याय पाने में पीढ़ी लग जाये ।       हमारे कानून व्यवस्था में ऐसी कौन सी समस्या है जो हमारे अदालतों को निर्णायक भूमिका निभाने में बहुत ही लम्बा समय लगता है।        यहाँ  किसी भी हालत मे लिया गया मुकदमें का निर्णय अगली पीढ़ी बोझे की तरह ढो रही है । 

हम भी जानते हैं हंसना

हम भी जानते हैं हसना  हम भी जानते हैं  हंसना, मगर मजबूर है बच्पना दो वक़्त की रोटी की खातिर, हंसना हो जाता है सपना ।। विचारो की बौछारे उठती,   मस्तिस्क की नस नस में दर दर । कुण्ठाये मेरा गला घोटती इन चारदिवारी के अंदर ।।