हम भी जानते हैं हंसना

हम भी जानते हैं हसना 

हम भी जानते हैं  हंसना,
मगर मजबूर है बच्पना
दो वक़्त की रोटी की खातिर,
हंसना हो जाता है सपना ।।
विचारो की बौछारे उठती,
  मस्तिस्क की नस नस में दर दर ।
कुण्ठाये मेरा गला घोटती इन चारदिवारी के अंदर ।।

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